यह एक बहुत ही खूंखार कहानी है..
मेरा नाम सिद्धार्थ है और मैं इस कहानी को लिख रहा हूं यह कहानी झारखंड के लोहरदगा में दो बच्चे जो हॉस्टल में रहते थे उनकी कहानी है..
मैं एक बात बता देना चाहता हूं कि ऐसे ही खौफनाक भूतिया कहानी सुनाने के लिए हमारे इस वेबसाइट पर आप बन रहे हम अब कहानी की शुरुआत करने जा रहे हैं वह दो जो बच्चे थे वह पढ़ाई करते थे क्लास दो के बच्चे थे वह दोनों एक का नाम मोहन था दूसरे का नाम राहुल था यह एक काल्पनिक नाम है उनके असली नाम को सामने नहीं लाया गया है..
बात 2003 की है मोहन और राहुल दोनों सरस्वती शिशु विद्या मंदिर के विद्यार्थी थे और वनवासी कल्याण केंद्र के हॉस्टल में पढ़ाई किया करते थे वहां से उनकी विद्यालय बहुत ही सामने थी और यह दोनों समय पर विद्यालय जाया करते थे और वहां से अपनी हॉस्टल आ जाया करते थे यह दोनों काफी घनिष्ठ मित्र थे दोनों में अच्छी बनती थी और यह दोनों साड़ी कम साथ में क्या करते थे नहाना धोना खाना पीना स्कूल जाना स्कूल से वापस आना..
कुछ दिनों पहले की बात है 2003 में अप्रैल का महीना चल रहा था हॉस्टल के जो संचालक थे उनसे किसी तरीके से बच्चा हो जाने के वजह से वहां का प्रबंध छोड़कर चले गए थे जिसके वजह से हॉस्टल में जितने बड़े छोटे विद्यार्थी रह रहे थे सभी को खाने-पीने की बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही थी..
जिसके वजह से दो-तीन दिन लोग यहां वहां इधर-उधर खाना-पीना खाकर अपना समय व्यतीत कर चुके थे लेकिन चार दिनों के बाद एक ऐसा समय आया जब किचन में खाना बनाने और खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा हुआ था बड़े विद्यार्थी और छोटे विद्यार्थी दोनों इस बात से बहुत ही दुखी थे कि अब उनके पास कोई दूसरा व्यवस्था करने का कोई साधन नहीं था..
जिन-जिन से वह लोग मदद मांग सकते थे उन्होंने मदद मांगा लेकिन आप उनके पास मदद के लिए भी कोई नहीं था इसी बीच दोनों बच्चे को बोला जाता है कि आप लोग चाहिए और वहां पर रोड के किनारे एक भैया रहते हैं उनको बुलाकर ले आइएगा वह दोनों बच्चे चले जाते हैं जिनका नाम राहुल और मोहन है..
कहानी यहीं से शुरू होती है क्योंकि राहुल और मोहन जब रोड के किनारे चले जाते हैं तो वहां पर एक होटल हुआ करता था जो होटल बहुत ही अच्छी मिठाई बनाया करता था वह दोनों बच्चे होटल के पास जाकर खड़े हो गए कुछ देर वहां खड़े होने के बाद उन्होंने देखा कि जिन्हें उन्हें बुलाने के लिए भेजा गया है वह व्यक्ति नहीं आ रहा है और वह भूखे भी थे जिसकी वजह से मिठाई की सुगंध उन्हें अपनी तरफ खींच रही थी इसी बीच वहां का जो मालिक था वह किसी काम से थोड़ी दूर चला गया अपने होटल से उन बच्चों को वहां पर बैठने के लिए बोल करके इसी बीच दोनों बच्चों ने वहां से दो-दो मिठाई उठाकर वहां से भागने लगे...
लेकिन गलती यहां पर यह हुई कि जिस तरफ से वह मिठाई वाला आने वाला था उसी और वह लोग भागने लगे मिठाई वाला सोचा क्या बात है यह सोचकर उन दोनों बच्चों को दोनों हाथों से पकड़ लिया दोनों हाथों से पकड़ने के बाद उन्होंने देखा कि बच्चों के हाथों में मिठाई है फिर उन्होंने मिठाई को उनके हाथों से छीन कर और मिठाई अपने दुकान में रख ली और बच्चों को बोला कि तुम लोग यहीं पर बैठो मैं फोन करके बुलाता हूं तुम्हारे जो सीनियर है उनको और सारी बात बताता हूं बच्चे पूरी तरीके से डर गए थे क्योंकि उन्होंने ऐसा पहली बार किया था..
दोनों बच्चे विचार बनाते हैं कि हम दोनों को यहां से भाग जाना चाहिए और यहां से हॉस्टल चले जाना चाहिए वह दोनों एक साथ विचार बनाते हैं और भागने की कोशिश करते हैं और अंत में वह दोनों वहां से उठकर भागने लगते हैं एक बच्चा हॉस्टल के अंदर घुस जाता है दूसरा बच्चा फिर से पकड़ लिया जाता है..
एक बच्चा भाग करके हॉस्टल के अंदर घुस जाता है लेकिन वह डरा हुआ था कि हॉस्टल में सभी को यह बात पता चलेगी तो पता नहीं क्या होगा यह सोच करके वह यहां वहां छुपता फिरता है हॉस्टल बहुत ही बड़ा कैंपस था उसके अंदर एक अस्पताल भी हुआ करता था जो बनवासी कल्याण केंद्र का हॉस्टल था और बनवासी कल्याण केंद्र का हॉस्पिटल भी था..
वह बच्चा भागते-भागते हॉस्पिटल के पीछे पहुंचता है और अस्पताल के पीछे पहुंचाने के बाद वहां एक खाली कमरा था वहां पर घुस जाता है खाली कमरे में घुसने के बाद उसे बहुत ठंड लगने लगती है और वहां पर चारों तरफ देखा जाता है कि कुछ भी वहां नहीं होता है ना वहां लाइट होती है ना किसी तरीके से कोई सामान पड़ा होता है वह रूम पूरे तरीके से खाली होता है वह बच्चा वहां नया-नया था तो उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैमरा आखिर क्यों बनाया गया है..
जब हॉस्टल के सारे बच्चे फील्ड में खेलने के लिए जाया करते थे तो वहां पर वह सारे बच्चे वह कमरे को देखते थे लेकिन वहां कोई जाता नहीं था और जो बच्चा मिठाई को लेकर के भागने वाला था वह बच्चा भी वहीं पर जाकर के छुपा हुआ था..
समय के अनुसार देखा जाए तो रात में 8:00 से लेकर के 11:12 बजे तक वह लड़का वहीं पर छुपा रहा वह अंदर से डरा हुआ था कि आखिर अब आगे क्या होगा मैंने इतनी बड़ी गलती कर दी इस चीज का उसे पछतावा भी था लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा था वह मन में विचार बना रहा था कि अब मुझे यहां से निकलना चाहिए और यह सोच करके वह धीरे-धीरे छुपता छुपता हॉस्टल चला गया और हॉस्टल के कमरे में जाकर के छुप गया क्योंकि 2003 की बात है उसे वक्त लाइट की बहुत ज्यादा समस्या हुआ करती थी पूरे शहर मे.....
वह हॉस्टल चला गया हॉस्टल जाने के बाद उसके बड़े सीनियर उसे किसी तरीके से पकड़ दिए और उसे खाना खिलाने लगे खाना खिलाते हुए उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं ऐसा होता है दोबारा ऐसी गलती मत करना यह बात यहीं पर समाप्त हो गई लेकिन कुछ दिनों के बाद उसे बच्चों को पता चला कि वहां जहां वह छुपा हुआ था वहां पोस्टमार्टम होता है और छोटे बच्चों को वहां पर किड फाड़ करके उनका पोस्टमार्टम किया जाता है इसीलिए वह कमरा खाली रहता है लेकिन यह सारी बात जानने के बाद वह छोटा बच्चा अंदर से और भी ज्यादा डर गया कि मैं इतनी रात तक अकेला उसे जगह पर छुपा हुआ था...
बाद में उसे समझ में आने लगा कि यह कितनी डरावनी चीज थी जो उसने इन सारी जगह पर जाकर बिताया था और कितनी हिम्मतवाली बात थी लेकिन ऐसे अनजान में ऐसी जगह पर जाना अलग बात होता है और अगर आपको जानकारी हो और आप ऐसी जगह पर जाते हैं तो आपको डर लगेगा लेकिन उसे छोटे बच्चों को किसी तरीके से कोई भी जानकारी नहीं थी जिसकी वजह से वह ऐसी जगह पर समय बिता पाया और बिना डरे उसे जगह पर रह पाया...
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